मुझे याद है जब मैं पहली बार पूरी तैयारी के साथ मंच पर गई थी, मेरे सामने बच्चों की एक भारी भीड़ बैठी थी। मेरे हाथ पांव मानो सुन पड़ गए। डर के कारण एक शब्द भी मुंह से नहीं निकला। किसी भी तरह टीचर ने मुझे हिम्मत बंधाई और मैंने बोलना शुरू किया। उस दिन मंच से उतरते वक्त एक बहुत बड़ी सीख मैं वहां से लेकर आई कि सिर्फ कंटेंट (Content) को रट्टे मारकर याद करना ही काफ़ी नहीं है।
इसके अलावा भी बहुत सी ऐसी बातें हैं, जो हमें कुशल वक्ता बनाने में मदद करती हैं। आज हम इसी विषय पर बात करते हुए आगे बढ़ते हैं और मैं वादा करती हूं कि इस आर्टिकल को पढ़ने और समझने के बाद, अगर आप इन बातों को जीवन में अप्लाई करेंगे तो बहुत जल्द आपका बच्चा मंच पर बोलने की कला (Public Speaking) में माहिर हो जाएगा।
Note :-
घबराएं नहीं यह सोचकर कि बच्चों को कुछ भी सीखने में बहुत माथा पच्ची करनी पड़ती है क्योंकि यहां पर दिए गए Ideas बहुत ही आसान और बिना खर्चे के हैं।
पाठ्य पुस्तकों से फायदा उठाएं
उम्र के अनुसार बच्चों का स्कूल जाना, पढ़ाई के तौर पर अनिवार्य हो जाता है। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वो बच्चों की पुस्तकों से मदद लेकर, बोलने की कला विकसित करने का पहला कदम उठाएं। आप इसके लिए निम्नलिखित तरीके अपना सकते हैं :-
होमवर्क पर चर्चा करें –
बच्चों के स्कूल से आने के बाद समय निकालकर, उनके होमवर्क के बारे में ज़रूर पूछें ताकि बच्चे उसे ज्यादा से ज्यादा शब्दों में एक्सप्लेन (Explain) करने के लिए, अपनी तरफ से पूरा प्रयास करें।
कविता, कहानी याद कराएं –
कहते हैं कि बूंद – बूंद से सागर भरता है। इसी कहावत को मद्देनज़र रखते हुए कम उम्र से ही, बच्चों को छोटी-छोटी चीजें (जैसे कविता पाठ, शायरी, कहानी या किसी महापुरुष की कोई खास बात आदि) याद करने में मदद करें। ऐसी गतिविधियों में अभिभावकों का बच्चों के साथ शामिल होना बेहद ज़रूरी है ताकि आपसे सुनकर वो अपनी कल्पना शक्ति का उपयोग करते हुए आसानी से सीख सकें। अच्छे से याद होने के बाद आप उन्हें खुद से सुनाने का मौका अवश्य दें।
बच्चे को टीचर बनने दें –
मनोवैज्ञानिक जीन पियाजे (Jean Piaget) ने बच्चों को ‘छोटे वैज्ञानिक (Little Scientists)’ कहकर पुकारा है।
जब भी आपको लगे कि बच्चों को कुछ-कुछ चीजें याद होने लगी हैं तो आप उनसे ऐसे सवाल करके, विषय को दोहराने में उनकी मदद कर सकते हैं। जैसे :-
- ➡ अरे! बेटा वह ‘जंगल के शेर’ वाली कहानी कौन सी थी। मैं भूल गई, ज़रा याद करवा दो।
- ➡ ओहो! मुझे याद क्यों नहीं रहता। बेटा भारत को आज़ादी दिलवाने वाले देशभक्तों के नाम याद करवाने में मेरी थोड़ी मदद कर दो।
- ➡ हे भगवान, अभी याद किया था। फिर से भूल गई। बेटा……. (विषय के अनुसार आप प्रश्न कर सकते हैं।)
इस तरह से अनजान बनकर आप बच्चे की स्मरण शक्ति परख सकते हैं। उनको भी यह जानकर खुद पर गर्व महसूस होगा कि वो छोटे होकर भी, बड़ों को कुछ सीख सकते हैं।
परिवार या मेहमानों के सामने बुलाएं
यह सिर्फ़ आपकी बात नहीं है, जब आपके बच्चे मेहमानों के सामने बोलने से बचने की कोशिश करते हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि हर घर की कहानी यही कहती है। बच्चे की झिझक दूर करने के लिए परिवार को इकट्ठा बैठाकर, उनके सामने कुछ सुनाने को कहें या खुद का और परिवार का परिचय देने को कहें।
Note :-
बच्चा जैसा भी बोले, उसकी प्रशंसा करते हुए उसको आगे बोलने के लिए प्रेरित करें।
मेहमानों के घर आने पर हम उनका हाल-चाल पूछते हैं, उनसे बातचीत करते हैं। यह वो अवसर है, जब आप बाहर के लोगों के प्रति बच्चे का डर ख़त्म करने में मदद कर सकते हैं। उन्हें कुछ समय अपने साथ मेहमानों के बीच अवश्य बैठाएं। उनके सामने खड़े होकर कुछ सुनाने के बदले, आप उसे इनाम का वादा करें तथा बाद में वादे को पूरा करना ना भूलें।
समझ ना आने पर मदद लें
कम पढ़े लिखे अभिभावकों में, ज्ञान का अभाव होने के कारण यह समस्या खड़ी हो जाती है कि वे अपने बच्चों को आगे बढ़ाने में कैसे मदद करें। ऐसी परिस्थिति में माता-पिता को सोच समझकर फैसला लेना चाहिए और बच्चे के शिक्षकों से, मदद के बारे में बातचीत करनी चाहिए क्योंकि किसी भी बच्चे का भविष्य पेरेंट्स के साथ-साथ टीचर्स पर भी निर्भर करता है। जहां तक मंच पर बोलने की कला का सवाल है, आप शिक्षकों से राय ले सकते हैं अन्यथा सोशल मीडिया के युग में मोबाइल से जानकारी एकत्रित कर सकते हैं।
Note :-
इस कला में आप चाहे जितने मर्ज़ी पैसे लगा दें, मगर जब तक बच्चा खुद से प्रयास नहीं करेगा और आप उसका साथ नहीं देंगे, तब तक इस कला में एक छोटे बच्चे के लिए निपुण बनना असंभव जान पड़ता है।
सवाल जवाब करने से रोकें नहीं
हमारे घर की छत से, हमारे पड़ोसी का घर बिल्कुल स्पष्ट नज़र आता है। उनके घर में एक भैंस, एक गाय और उसके दो बच्चे भी थे। कुछ महीने पहले की बात है जब मेरी सबसे छोटी बुआ जी की लड़की (साढ़े चार साल की) और मैं छत पर टहल रहे थे। वहां पर कुछ दिखाने लायक था नहीं, तो मैंने उसे पड़ोसियों के पशु दिखा दिए। तभी उसके मन में सवाल आया और मुझसे पूछने लगी कि
“इस भैंस के कान पर yellow – yellow क्या है ?
मैंने जवाब देते हुए कहा कि “पशु का जीवन बीमा कराने पर यह लगाया जाता है ताकि किसी भी परिस्थिति में अगर इसकी मृत्यु हो जाए तो इसके मालिक को पैसे मिल सके।”
“अच्छा, तो फिर ये जो छोटे-छोटे बच्चे हैं। इनके कानों में क्यों नहीं है ?” ऐसा कहते हुए, उसने दूसरा सवाल पूछा।
“ये अभी बहुत छोटे हैं, इसीलिए नहीं है।” मैंने जवाब देते हुए कहा।
“जब मैं बड़ी हो जाऊंगी तो मेरे कानों में भी ऐसा लगेगा ना ?” मासूमियत से उसने फिर पूछा।
” अरे नहीं, हम लोग इंसान हैं। हमारे ऐसे नहीं लगता।” मैंने हंसकर कहा।
” अच्छा, हमारे कानों में दर्द होता है, इसलिए नहीं लगता क्या ? उसने फिर पूछा।
मुझे समझ नहीं आया कि क्या बोलूं। इसलिए मैंने ‘हां’ में उत्तर दे दिया।
घूमते हुए इन सवालों का सिलसिला तब तक चलता रहा जब तक बुआ जी ने हमें छत से नीचे आने को आवाज़ नहीं दी।
जब बच्चे अक्सर सवाल जवाब करते हैं तो पेरेंट्स यह कहकर उन्हें चुप करवा देते हैं कि
अभी तू बहुत छोटा है।
दिमाग खराब मत कर।
तेरे फालतू सवालों के लिए मेरे पास समय नहीं है आदि।
मगर ऐसा करके आप बच्चे की सोचने समझने की क्षमता को विकसित करने की बजाय उसमें रुकावट पैदा कर रहे हैं। जो भविष्य में उनको खुल कर बोलने या कोई सवाल पूछने में बाधा उत्पन्न करेगी। इसीलिए जहां तक हो सके, बच्चों के सवालों का जवाब देने से पीछे नहीं हटें। उत्तर न होने की परिस्थिति में आप अन्य विकल्प चुन सकते हैं। मगर भूलकर भी उन्हें यह एहसास ना दिलाएं कि आपके पास उनके सवालों के जवाब नहीं है या कुछ पूछने पर आप उन्हें डांट देंगे।
अवसरों का लाभ उठाएं
बच्चों को आगे आकर बोलने के लिए स्कूल की मॉर्निंग असेंबली या क्लासरूम बहुत अच्छा Platform है। इसके लिए आप टीचर्स से अवश्य बात करें ताकि वो बच्चे को दो-चार मिनट का समय देकर परफॉर्मेंस में सुधार करने का मौका दें। विभिन्न तरह के कार्यक्रमों (स्वतंत्रता दिवस, टीचर्स डे, हिंदी दिवस, बाल दिवस, गणतंत्र दिवस आदि) में बच्चों को हिस्सा दिलवाते रहें। उनको शायरी, कविता या भाषण जोरदार तरीके से याद कराएं और किसी विशेष दिन मंच पर बोलने के लिए प्रेरित करें। यह छोटे-छोटे उस सीढ़ी के पायदान हैं, जो बच्चों को सफलता की ऊंचाई तक लेकर जाएंगे।
Note :-
यह मत सोचें कि इसके बदले में आपके बच्चे को कुछ इनाम मिलेगा या नहीं। भीड़ के सामने खड़े होकर सफलतापूर्वक बोलना भी अपने आप में एक बहुत बड़ी उपलब्धि है।
आईने के सामने जाएं
आईने के सामने जाकर जोर-जोर से बोलने की प्रैक्टिस करना बहुत ज़रूरी है। कोशिश करें कि एक छोटा सा Topic (विषय) उठाकर आप खुद बोलें और बच्चे को अपने पीछे-पीछे बोलने को कहें। आईने के सामने बोलने से हमें अपने हाव-भाव का पता लगता है, हमारे अंदर का डर दूर होता है और गलतियों का पता चलता है। कई बार हमें खुद की गलती का इतना पता नहीं लगता, जितना सामने खड़े व्यक्ति की गलती का। इसलिए एक अन्य विकल्प के रूप में, आप बच्चे की वीडियो रिकॉर्ड करके भी देख सकते हैं।
Note :-
कम समय में परिणाम हासिल करने के लिए बच्चों को नियमित रूप से कुछ समय अभ्यास ज़रूर कराएं ताकि जल्दी ही वह मंच पर बोलने के डर को हरा सके।
निष्कर्ष –
हो सकता है आपको अन्य वेबसाइट पर इससे भी अच्छी बातें पढ़ने को मिले। आप वहां से भी राय लेकर बच्चों को सिखा सकते हैं। लेकिन मैंने आपके साथ छोटा सा अनुभव सांझा करते हुए कुछ बातें बताई हैं। जिनका पालन करते हुए मैंने भी मंच पर बोलने की कला ‘Free Of Cost’ सीखी है।
बच्चों को पब्लिक स्पीकिंग सिखाने से जुड़ी अधिक जानकारी के लिए आप इस नंबर पर संपर्क कर सकते हैं – 7206179642