बच्चे हो रहे सोशल मीडिया का शिकार। कैसे बचाएं Parents?

मैंने अधिकतर अभिभावक (Parents) इस बात को लेकर परेशान देखे हैं कि उनके बच्चे दिन भर मोबाइल फोन का उपयोग करते हैं। बहुत समझाने के बाद भी वो पेरेंट्स का कहना नहीं मानते, जिसके कारण परवरिश पर सवाल उठना जायज़ है।

सोशल मीडिया के युग में बच्चों को स्क्रीन से दूर रखने की सबसे बड़ी चुनौती, माता-पिता के सामने खड़ी हो जाती है। ऐसे में अभिभावकों को अपनी संतान के भले के लिए सूझबूझ और विवेक से काम लेना अति आवश्यक है।

सोशल मीडिया से होने वाले नुकसान

बच्चों से लेकर बड़ों तक लगभग हर व्यक्ति मोबाइल का उपयोग करने लगा है। ऐसे में सबसे ज्यादा खिलवाड़ बच्चों की ज़िन्दगी से हो रहा है। जिसके कारण उन्हें विभिन्न तरह की समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

  • आंखों पर असर :- अधिकांश समय स्क्रीन के सामने बिताने से, बच्चों की आंखों पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे कम उम्र में जल्दी चश्मा लगनेे की संभावना बढ़ जाती है।
  • शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्रभावित होना :- एक ही जगह बैठे रहना बच्चों की शारीरिक गतिविधियों में रुकावट पैदा करता है। जिससे उनका विकास रुक जाता है। जल्दी गुस्सा आना, चिड़चिड़ा होना, मोबाइल के लिए रोते रहना आदि मानसिक स्वास्थ्य को प्रभावित करने के लक्षण हैं।
  • वास्तविकता से दूर होना :- रील (Reel) की दुनिया में खोने के बाद हम रिअल (Real) दुनिया में जीना भूल जाते हैं। सोशल मीडिया के ज्यादा उपयोग से, बच्चा अपने आसपास होने वाली घटनाओं के बारे में जानने से वंचित रह जाता है। जिसके कारण उसे सामाजिक तौर पर विकसित होने में अनेक कठिनाइयों का सामना करना पड़ सकता है।
  • गलत कंटेंट (Content) की तरफ आकर्षण :-अभिभावकों का अपनी संतान पर ज्यादा ध्यान ना होने की वजह से, बच्चे सोशल मीडिया पर परोसी जाने वाली अनेक गलत चीजों का शिकार हो जाते हैं अथवा आकर्षित करने वाले विषयों को देखते रहने की वजह से, बच्चा कब मोबाइल का आदी हो जाए, पता ही नहीं लगता।
  • पढ़ाई से ध्यान हटाना :- पढ़ाई से ध्यान हटने का मुख्य कारण, अन्य विषयों की तरफ़ रुचि होना हो सकता है। जिसमें सोशल मीडिया का अधिक उपयोग सबसे हानिकारक है।
  • पारिवारिक और सामाजिक संपर्क ख़त्म होना :- मैंने अधिकतर बच्चे ऐसे देखे हैं जो हर जगह मोबाइल फोन का उपयोग करते पाए जाते हैं, चाहे उनके आसपास परिवार के सदस्य, रिश्तेदार या दोस्त मौजूद हों। ऐसी परिस्थिति में बच्चा अपना अधिकांश समय सोशल मीडिया के साथ बिताना पसंद करता है। मगर धीरे-धीरे उसका परिवार और समाज के साथ संपर्क टूटने लगता है। जिसके कारण आगे चलकर उसे दोस्त बनाने में समस्याएं आ सकती हैं।

सावधानियां –

अभिभावक अक्सर सोच में पड़ जाते हैं कि आधुनिकता के इस युग में बच्चों को सोशल मीडिया से पूरी तरह दूर रखना असंभव जान पड़ता है। मगर इन तरीकों का इस्तेमाल करके आप इस समस्या को काफ़ी हद तक रोक पाने में समर्थ हो सकते हैं।

समय निर्धारित करें :- वैसे तो बिना किसी वजह के बच्चे को मोबाइल देना नुकसानदायक है। इसके बावजूद भी अगर किसी परिस्थिति में दिया जाता है तो उसका एक निश्चित समय निर्धारित करें। समय पूरा होने पर बच्चे को स्क्रीन से हटा दें। चाहे वह टीवी हो या मोबाइल।

( समय का प्रबंधन, कई चीजों को आसान बना देता है। )

माता-पिता ध्यान दें :- सभी अभिभावकों को यह समझना अति आवश्यक है कि बच्चे आपको देखकर सीखते हैं। कोशिश करें खाली समय में आप गैजेट्स का उपयोग ना करें। ऐसे में आप कुछ अन्य गतिविधियों का चुनाव कर सकते हैं, जिसमें बच्चों को भी शामिल किया जा सके। जैसे घर में कोई रचनात्मक काम करना, नई डिश बनाना, चित्रकारी करना आदि। पेरेंट्स कै ऐसा करने से बच्चे को स्वत: ही समझ आ जाता है कि मेरे माता-पिता जैसा करते हैं, मुझे भी वही करना है।

( पेरेंट्स, बच्चों का आईना होते हैं। )

बच्चों को छूट दें :- उस बात को लगभग 2 साल हो गए, जब पड़ोस वाले आंटी जी अपने चार साल के बेटे को यह कहते हुए सुनाई दे रहे थे कि
“अभी नहलाया है तुझे, अगर ज़रा भी मिट्टी में हुआ तो बहुत मारूंगी।”
हालांकि उसके सारे दोस्त मिट्टी में खेल कर अलग-अलग आकृतियां बनाकर मजे कर रहे थे। बच्चे के लिए कभी ऐसी परिस्थिति उत्पन्न मत करो, जिसके कारण जाने अनजाने आप उसे यह कहकर सोशल मीडिया की तरफ धकेलते जाएं कि
“यह ले टीवी चला देती हूं या मोबाइल दे देती हूं लेकिन एक जगह टिक कर बैठ जा।”
आपके ऐसा करने से उसके शारीरिक और मानसिक विकास में रुकावटें आएंगी। जो कदापि उचित नहीं है।

( मानसिक रूप से प्रताड़ित बच्चों का जीवन, उन लोगों की तुलना में ज्यादा दुख भरा होता है, जिनको स्वतंत्रता दी जाती है। )

घर का माहौल सुधारें : – घर का हिंसात्मक वातावरण, माता-पिता का लड़ाई झगड़ा, परिवार के सदस्यों में दूरियां, अपशब्दों का प्रयोग करना आदि के कारण बच्चे के मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जिससे बचने के लिए वह अपनी रुचिकर चीजों की तरफ़ आकर्षित होता है। ऐसे में संभव है कि वह मोबाइल फोन की मांग करे। अभिभावकों को चाहिए कि वह घर का माहौल शांत रखते हुए मिलजुल कर प्रेम से रहें ताकि बच्चे पर इसका सकारात्मक प्रभाव पड़े।

( घर का दोस्ताना माहौल, बच्चे को भविष्य में गलत कदम उठाने से रोक सकता है। )

लालच ना करें :- जैसा कि आप सब जानते हैं आज के युग में पॉपुलर होने के लिए लोग कुछ भी करने को तैयार हैं। छोटे-छोटे बच्चे ऐसी वीडियो बनाते हैं या यूं कहें कि उन्हें ऐसा करने के लिए प्रेरित किया जाता है। जिसमें तरह-तरह के गलत विषयों का चुनाव किया जाता है, गालियां दी जाती हैं। समाज में इस तरह के कंटेंट का प्रचार प्रसार करना, सामाजिक ज़िम्मेदारी के नज़रिए से उचित नहीं है।

( छोटा सा लालच भी, अक्सर बड़े नुकसान का ज़िम्मेदार होता है। )

रोल मॉडल बनें :- जीवन में आगे बढ़ने के लिए, सभी को एक गाइड की ज़रूरत होती है। कितनी खुशी की बात होगी, अगर बच्चे के प्रेरणास्रोत उसके माता-पिता होते हैं। इसके लिए आप बच्चे को अपने जीवन से जुड़े संघर्षों के बारे में बताएं, ऐसे महान लोगों की कहानियां सुनाएं, जिन्होंने अपने प्रयासों से समाज में अभूतपूर्व परिवर्तन किए। ऐसी बातें सुनने से बच्चा विभिन्न तरह के अभिनेता अभिनेत्रियों को रोल मॉडल मानने की बजाय अपने पेरेंट्स को प्रेरणास्रोत के रूप में स्वीकार करेगा।

( बच्चे पर माता-पिता का सही प्रभाव, समाज के गलत प्रभाव से कहीं ज्यादा होना चाहिए। )

सही तरीका अपनाएं :- ज़रूरी नहीं कि सोशल मीडिया का उपयोग करने वाले सभी बच्चे गलत रास्ते पर चलते हैं। पेरेंट्स इसका उपयोग, बच्चे को विभिन्न तरह की कला कौशल सिखाने में भी कर सकते हैं।
मगर फिर भी एक समय सीमा पूरी होने के बाद, कुछ चीजें हमारे लिए नुकसान का कारण बन सकती हैं।

एक घटना – दो दिन पहले हमारा किसी कार्यक्रम के सिलसिले में रिश्तेदारों के घर जाना हुआ। गेस्ट रूम में बैठे हुए लगभग आधा घंटा बीत गया। तभी अचानक से बच्चे के रोने की आवाज़ सुनाई दी। यह बच्चा कोई और नहीं बल्कि उनके घर की बहू का साढ़े साल का बेटा था, जो मोबाइल ना देने की जिद्द पकड़ कर बैठा था। जैसे ही मैं अंदर गई, वहां पर पहले से ही मौजूद तीन-चार औरतें उसको मनाने की कोशिश कर रही थी। मेरी तरफ़ इशारा करते हुए आंटी जी ने कहा, “देख, सभी लोग तुझे देखने आ रहे हैं। अब तो मोबाइल दे दे।”

“पहले तो आपने इसको आदत डलवा दी और अब इस आदत को छुड़वाने के लिए खुद इसके साथ जिद्द पर अड़े हो।” मैंने थोड़े मज़ाक और धीमे लहज़े के साथ कहा।
उन्होंने भी यह कह कर अपना पल्ला झाड़ दिया कि “आजकल के बच्चे मोबाइल के बिना कहां रहते हैं।”

Note – बच्चों को अच्छी आदतें सिखाने और बुरी आदतें छुड़ाने के लिए, पेरेंट्स को खुद को सुधरना अति आवश्यक है।

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