अधिकतर पेरेंट्स (parents) के मन में यह सवाल अक्सर आता है कि हम अपनी परवरिश शैली को और भी बेहतर कैसे बनाएं या बहुत प्रयास करने के बाद भी ऐसी क्या कमियां रह जाती हैं, जिनके कारण हम बच्चों की नज़रों में अच्छे अभिभावक नहीं बन पाते।
जहां तक कमियों की बात है, अगर हमें अपनी गलतियां पता लग जाती हैं, तो हम उनको सुधारने की कोशिश कर सकते हैं। इसी से संबंधित आज हम एक नए विषय पर चर्चा करने जा रहे हैं। आशा है यह आर्टिकल, आपको कुछ चीजें अच्छे से समझने में मदद करे।
अगर आपने ‘Stephen Covey’ की ‘The Seven Habits Of Highly Effective People’ पुस्तक पढ़ी है तो आपको अंदाज़ा लग गया होगा कि मैं किसी विषय पर बात करने जा रही हूं।
इस पुस्तक में एक सिद्धांत दिया गया है। जिसको हम P/PC के रूप में जानते हैं। यहां पर P का मतलब है Production यानी उत्पादन और PC का मतलब है Production Capability यानी उत्पादन क्षमता, जिसके ज़रिए हम प्रोडक्शन चाहते हैं।
आप सभी ने वह कहानी सुनी होगी, जिसमें एक व्यक्ति की मुर्गी सोने के अंडे देती थी। लेकिन एक दिन उसने यह सोचकर मुर्गी को काट दिया कि इसमें ढ़ेर सारे सोने के अंडे निकलेंगे। फिर मैं अमीर बन जाऊंगा, लेकिन ऐसा नहीं हुआ। उसने अपने लालच के कारण ‘प्रोडक्शन’ भी को दिया, जो उसे सोने के अंडों के रूप में मिलता था और ‘प्रोडक्शन कैपेबिलिटी’ यानी अपनी मुर्गी को भी खो दिया, जो उसका Source थी।
यहां पर ध्यान देने योग्य बात यह है कि अगर उस व्यक्ति की तरह, हम भी सिर्फ़ एक चीज पर ध्यान केंद्रित करके काम करेंगे तो कहीं ना कहीं हम भी बहुत जल्द जीवन के सफ़र में भटक जाएंगे।
आप सोच रहे होंगे कि चलो, इतनी बात तो ठीक है। लेकिन यह सिद्धांत हमारे जीवन में कैसे लागू होता है। आइए जानते हैं विभिन्न परिस्थितियों में यह सिद्धांत, हमारे दिन प्रतिदिन के जीवन में कैसे काम करता है।
➡ पेरेंट्स और बच्चों के रिश्तों में –
आधुनिकता के बदलते युग में सबसे ज्यादा समस्याएं रिलेशनशिप (Relationship) को लेकर आ रही हैं। इसमें कोई दो राय नहीं कि सभी पेरेंट्स अपने बच्चों से ‘प्रोडक्शन’ चाहते हैं कि वो संस्कारवान बनें, छोटी-छोटी ज़िम्मेदारी सीखें, गलत आदतों को ना अपनाएं, किसी को बुरा ना बोले या ऐसी ही और बहुत सारी चीजें, जो पेरेंट्स (parents) बच्चों से चाहते हैं।
लेकिन इसके लिए ‘प्रोडक्शन कैपेबिलिटी’ कहती है कि बच्चों को समय दो, उनकी बातों को सुनो, उनकी इज्ज़त करो, प्रेम से पेश आओ, छोटी-छोटी चीजें सीखने में हेल्प करो, बात-बात पर दखलअंदाज़ी मत करो आदि।
सोच कर देखिए, अगर इन दोनों में बैलेंस होगा तो आपका अपने बच्चों के साथ रिश्ता कितना गहरा होगा। लेकिन अगर सिर्फ़ एक चीज की तरफ़ ज्यादा झुकाव होगा तो सब गड़बड़ हो जाएगी। किस अर्थ में, गड़बड़ी की संभावना बनी रहेगी। आइए यह भी जानते हैं।
मान लीजिए आपका पूरा फोकस, उस ‘प्रोडक्शन’ पर है। जो आप अपने बच्चों से चाहते हैं, लेकिन उसके लिए आपको जो करना चाहिए, वो बिल्कुल नहीं कर रहे। ज़रा भी ध्यान नहीं दे रहे, ऐसा सोचते हैं कि बच्चे ही तो हैं। चीखें, चिल्लाएं, काम कराएं, भला बुरा कहें, क्या ही फ़र्क पड़ता है। यानी ‘पीसी’ की मेहनत को आपने बिल्कुल नज़रअंदाज़ कर दिया।
इसका दूसरा पहलू कहता है कि आपने पूरा फोकस ‘पीसी’ पर कर दिया, यानी कि बच्चों की हर फ़रमाइश पूरी करने लगे, हर कीमत पर उनको खुश रखना लगे हैं, वो जैसा करना चाहते हैं…आप उनको वैसा करने दे रहे हैं, किसी प्रकार की रोक-टोक नहीं है, पूरी तरह से स्वतंत्रता है… लेकिन ‘प्रोडक्शन’ के रूप में फिर आपको क्या मिलेगा – ज़ीरो आउटपुट।
ये तो वही बात हो गई कि जिस बकरी को आपने कभी चारा नहीं डाला, उसके दूध पर अपना हक जता रहे हैं।
➡ पति पत्नी के रिश्तों में –
अगर देखा जाए तो पति-पत्नी का रिश्ता प्रेम का प्रतीक माना जाता है। दोनों ही चाहते हैं कि ‘प्रोडक्शन’ के रूप में उनके बीच प्रेम बना रहे। लड़ाई झगड़ा ना हो, एक दूसरे को समझें, काम में हाथ बंटाएं, लेकिन ‘प्रोडक्शन कैपेबिलिटी’ के रूप में आप क्या कर रहे हैं।
वही लापरवाही, शिष्टाचार भूल जाते हैं, भावनाओं की कदर नहीं करते, एक दूसरे को सही साबित करने पर तुले रहते हैं आदि। इन सबके कारण जीवन में उथल-पुथल मची रहती है, जो रिश्ते में तकरार पैदा करती है और उनको जीवन के उस मोड़ पर लाकर खड़ा कर देती है। जहां दोनों के बीच प्रेम ख़त्म हो जाता है। संभवत: भावनाओं में तालमेल न होने के कारण, पति पत्नी एक दूसरे के लिए सिरदर्दी बन जाते हैं।
➡ भौतिक वस्तुओं में –
मान लीजिए, मेरे पास एक सुंदर सी, प्यारी सी साइकिल है। मैं चाहती हूं कि यह लंबे समय तक चले, जल्दी खराब ना हो और सुंदर भी बनी रहे। आपके अनुसार मुझे ‘पीसी’ के रूप में, इसके लिए क्या करना पड़ेगा?
ज़ाहिर सी बात है कि उसकी देखभाल करनी पड़ेगी, समय-समय पर मरम्मत की ज़रूरत होगी, ज्यादा धूप से बचाक रखना पड़ेगा, कोई हफ़्ते – महीने भर से उसको धोना भी पड़ेगा। ऐसा करके मैं उसको लंबे समय तक सही सलामत रख सकती हूं।
लेकिन क्या होगा, अगर मैं इसकी सिर्फ़ साफ सफाई पर ही ध्यान देती रहूं , दुल्हन की तरह सजाकर रखूं। मगर इससे कोई भी काम ना लूं और ना ही इसको प्रयोग में लाऊं।
नतीजे के रूप में दो परिस्थितियां हमारे सामने आएंगी कि साइकिल को काम में ना लेने के कारण, यह खड़ी-खड़ी खराब हो जाएगी और बिना देखरेख के अभाव में सिर्फ़ काम में लेते रहने से भी यह जल्दी खराब हो जाएगी।
➡ सेहत या स्वास्थ्य में –
इसमें कोई दो राय नहीं कि ‘प्रोडक्शन’ के रूप में हम सभी चाहते हैं, हमारा शरीर स्वस्थ रहे, तरह-तरह की बीमारियां ना लगे।
लेकिन ‘प्रोडक्शन कैपेबिलिटी’ से ध्यान हट जाने के कारण, हम ऐसा करने में असमर्थ रहते हैं। जिसकी वजह से खानपान का ध्यान नहीं रखते, कसरत नहीं करते, या तो बहुत कम खाते हैं या फिर तरह-तरह के फास्ट फूड खाते ही रहते हैं। स्टमक को स्पेस नहीं मिलता, रोग प्रतिरोधक क्षमता कम होने लगती है और तरह-तरह की नई बीमारियां जन्म लेने लगती हैं।
➡ अन्य परिस्थितियां –
हम अपने जीवन के लगभग सभी पहलुओं या परिस्थितियों में इस सिद्धांत को अपनाकर देख सकते हैं। जैसे मानसिक स्वास्थ्य को लेकर, जॉब के मामले में, कंपनी के मालिक और कर्मचारियों के रिश्तों में, पढ़ाई और सफलता में आदि।
➡ समाधान –
अगर हम अपने जीवन में चीजों को सही करना चाहते हैं तो हमें पता होना चाहिए कि पी/पीसी बैलेंस कैसे काम करता है और हम इससे कैसे मदद ले सकते हैं।
नहीं तो देखिए, ऐसा तो हो ही रहा है कि या तो हम अपनी मुर्गी से हाथ धो बैठते हैं, जो रिजल्ट दे रही थी… या फिर रिसोर्स का हम इतना ज्यादा यूज़ कर लेते हैं कि एक दिन प्रोडक्शन बनाने के लिए हमारे पास कुछ नहीं बचता।
ज़िंदगी की हर परिस्थिति में बैलेंस रहकर काम करना, इस बात का सबूत है कि हम जागरूकता के साथ जी रहे हैं।