“आपका बच्चा गलियां देता है, बड़ों के सामने बोलता है। आप इसको कुछ कहते क्यों नहीं ?” हमारे घर से लगभग 10 कदम की दूरी पर रहने वाले, पड़ोस की आंटी जी से मैंने पूछा।
“क्या कहूं मैं इसको ? अभी यह बच्चा है। तुम्हारी तरह बड़ा तो है नहीं। जब बड़ा होगा तो अपने आप सही बोलना सीख जाएगा,” एक ही झटके में बात ख़त्म करते हुए उन्होंने कहा।
आज लगभग सभी पेरेंट्स, इस गलती को ना जाने दिन में कितनी बार दोहराते हैं। फिर यह कहते हुए भी देर नहीं लगाते कि “पता नहीं हमारे बच्चे को कब अकल आएगी।” एक बार खुद से सवाल पूछकर देखिए
क्या आपकी परवरिश का यह सही तरीका है ?
हो सकता है, जवाब आपको अपने ही पास मिल जाए।
अधिकतर पेरेंट्स के मन में बार-बार यही सवाल आता है कि ज़रूरत ही क्या है बच्चों पर इतना टाइम लगाने की, अभी तो ये बहुत छोटे हैं और इनको समझ भी नहीं है। बड़े होंगे तो कुछ समझ भी विकसित होगी, उस समय गलती करने पर हम समझा देंगे।
इसी सोच के साथ शुरू होती है एक नई मुसीबत। जिसको हम खुद बुलावा देते हैं। हालांकि हम सभी को पता है कि बच्चों का माइंड बिल्कुल नया होने पर, वो दूसरों द्वारा दी गई डायरेक्शन के अनुसार ही काम करते हैं। अन्यथा हो सकता है कि ध्यान के अभाव में, बच्चे उस लर्निंग का शिकार हो जाएं, जिसको वो आसपास के लोगों या समाज से सिखेंगे। यहां पर स्पष्ट रूप से कहा नहीं जा सकता कि आपका बच्चा सही रास्ते पर ही चलेगा।
इसलिए ज़रूरी है कि आप अपने बच्चों को ऐसा माहौल दो, जहां पर उसको सही एजुकेशन और संस्कार मिल सके। आइए जानते हैं, सही परवरिश से होने वाले चार फायदे –
➡ नंबर 1 –
सभी अभिभावकों का इस बात से अवगत होना बेहद आवश्यक है कि अगर समय रहते बच्चों को पेरेंट्स का प्यार और उनका साथ मिलता है ( ध्यान दें, ऐसा ना हो कि आप उनको ओवर प्रोटेक्ट करो या बिल्कुल भी ध्यान ना दो। बैलेंस के साथ अपने बच्चों से अच्छा रिलेशन बनाकर रखें ), तो भविष्य में वह उन गलत चीजों से बचेगा। जो उसकी ज़िंदगी, परिवार और समाज के लिए सही नहीं है।
➡ नंबर 2 –
अगर मैं आपसे पूछूं कि समाज में लोगों से इंटरेक्शन करते हो ? आप कहोगे, हां बिल्कुल करते हैं।
लेकिन क्या सभी लोग बेझिझक बात करने में सक्षम होते हैं। ज़ाहिर सी बात है, नहीं होते।
क्योंकि बहुत से लोगों में Complex होते हैं, जिससे वो फेस टू फेस अच्छे से बात नहीं कर पाते। मगर यह समस्या आपके बच्चों में नहीं आएगी। अगर आप उनकी अच्छे से परवरिश करोगे, उनको सही तरीके से सामाजिक संपर्क में आना सिखाओगे क्योंकि बच्चा सोशल होना, सबसे पहले अपनी फैमिली से ही सीखता है।
➡ नंबर 3 –
पेरेंट्स… बचपन से ही, बच्चे का जिस तरीके से मांइड सेट करेंगे। लंबे समय तक वह वैसा का वैसा रहेगा। बहुत मुश्किल होता है उसको एक रास्ते से हटाकर दूसरे रास्ते पर लाना। तो कोशिश आपकी यही रहनी चाहिए कि उनके दिमाग में कुछ भी गलत चीज फिट मत करें।
इसका एक छोटा सा उदाहरण लेते हैं – कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनसे कईयों को डर लगता है और हम ऐसा सुनते हैं कि यह डर तो बचपन से ही इसके अंदर बैठा हुआ है। इसलिए बच्चों को जिस चीज से डर लगे, कोशिश करें कि बचपन से ही उस डर को दूर किया जाए। जैसे अंधेरे से डरना, पानी से डरना, तेज आवाज़ से डरना या किसी के साथ बातचीत करने से बचना आदि।
परवरिश जितनी बेहतर होगी, बच्चों का भविष्य उतना ही खूबसूरत होगा।
➡ नंबर 4 –
ज़रूरी नहीं कि हम एक काम को एक ही तरीके से सीख सकते हैं। हो सकता है उसमें भी चेंज करने पड़ते हैं। अगर आपको ऐसा लगता है कि बच्चों के जीवन में कुछ परिवर्तन करने की ज़रूरत है तो ऐसे बदलाव बचपन में बहुत आसानी से लाए जा सकते हैं।
ध्यान दें :-
ऊपर दी गई बातों के परिणाम आपको तभी मिलेंगे, जब आप थोड़ा सा सीरियस होकर अपने बच्चों पर अभी से ध्यान देना शुरू करोगे।
जिनके बच्चे छोटे हैं, उनके पास अभी वक्त है कि उन्होंने जिस जीवन को जन्म दिया है, उसको किसी भी सांचे में ढ़ाल सकते हैं। अगर आप ऐसा नहीं करते तो इसका ख़ामियाजा आपको तो भुगतना ही पड़ेगा, साथ में आपके बच्चों को भी।
क्योंकि आदत जितनी गहरी होती जाएगी, उसको छोड़ना उतना ही मुश्किल होता जाएगा।
निष्कर्ष :-
सभी अभिभावकों के लिए यह जानना ज़रूरी है कि आप बच्चों को संस्कार देना, शिक्षा देना, लेकिन उन पर अपने सपने या दुनिया की भागदौड़ को देखकर चीजें थोपना मत क्योंकि हर बच्चे की अपनी एक अलग ख़ासियत होती है। शायद आपको भी नहीं पता कि आपके बच्चे आगे चलकर भविष्य में क्या बनेंगे।
हो सकता है वह अच्छा गायकार बने, चित्रकार बने, टीचर बने, डॉक्टर बने या एक ऐसा इंसान बने, जिसमें सबकी भलाई हो। किसी भी तरीके से देख लीजिए, ज़िम्मेदारी तो पेरेंट्स को लेनी ही होगी। बेशर्ते अपने बच्चे को प्रेम दो, स्वतंत्रता दो, बेपरवाह बनो लेकिन लापरवाह मत बनिए।
इसमें कोई दो राय नहीं कि आप अपने बच्चों को सारी सुख सुविधाएं दे सकते हैं। मगर जो वैल्यूज होती है, संस्कार होते हैं या जो खुशी बच्चों को आपका साथ पाकर होती है। उसको तो पैसों से नहीं खरीद सकते ना…।
यह सुनी सुनाई बात नहीं है। हो सकता है आप खुद इसका एक उदाहरण हों या आपके आसपास में ऐसा देखने को मिल जाएगा कि जो पेरेंट्स बच्चों को वक्त नहीं देते। वो दूसरी चीजों से, उस कमी को पूरा करने की कोशिश करते हैं। अच्छे खिलौने ला देंगे, पैसे दे देंगे, बच्चे के रोने पर मोबाइल दे देंगे या उनकी सारी डिमांड पूरी करने लगेंगे। लेकिन फिर भी यह सब उस कमी को पूरा नहीं करेंगे, जो आप कर सकते हैं।
इसलिए कहते हैं कि बच्चों के लिए, आपके वक्त से बड़ा कोई तोहफ़ा नहीं होता।
धन्यवाद 🙏