क्या आपको पता है कि जैसे-जैसे बच्चे बड़े होते जाते हैं, पेरेंट्स के लिए यह चिंता का विषय बन जाता है कि उनके बच्चे किसी भी फील्ड में पीछे ना रह जाए या उनमें आत्मविश्वास (Self Confidence) की कमी ना आ जाए। वैसे अगर देखा जाए तो अपनी बात दूसरों के सामने रखने या सफल होने के लिए हर व्यक्ति के लिए सेल्फ कॉन्फिडेंस बहुत ही ज़रूरी है। इस आर्टिकल की मदद से आपको उन नए तरीकों के बारे में जानकारी मिलेगी जो बच्चों के सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ाने में मदद करते हैं।
➡️ पेरेंट्स खुद कॉन्फिडेंट रहें –
आपने देखा होगा कि अधिकतर पेरेंट्स दूसरों से बात करने में असहज महसूस करते हैं या चुप चुप से रहते हैं। इस आत्मविश्वास की कमी के कारण वो जाने अनजाने अपने बच्चों में भी ये गुण डाल देते हैं। आपको तो पता ही है कि बच्चे पेरेंट्स से सीखते हैं। इसीलिए सबसे पहले यह ज़रूरी है कि आपके अंदर आत्मविश्वास (Self Confidence) होना चाहिए ताकि बच्चा आपको देखकर यह फील करे कि अगर मेरे पेरेंट्स हर सही काम में कॉन्फिडेंस दिखाते हैं तो मैं भी अपने आप को ऐसा करने में समर्थ बना सकता हूं। कुछ चीजें ऐसी होती हैं, जिनको पेरेंट्स द्वारा बच्चों को ज्यादा सिखाने की आवश्यकता नहीं होती बल्कि वो अपने आप ही उनको ग्रहण कर लेते हैं।
➡️ “परंतु” की बजाय “और” शब्द प्रयोग करें –
मुझे याद है, जब मैं “How To Win Friends And Influence People” पुस्तक पढ़ रही थी तो उसमें लेखक द्वारा एक बहुत ही सुंदर बात लिखी गई थी कि ‘परंतु’ के बजाय ‘और’ शब्द का प्रयोग करें। उदाहरण के लिए पेरेंट्स यह कह सकते हैं कि “बेटा हमें तुम पर गर्व है कि तुम परीक्षा में अच्छे नंबर लाए ‘और’ अगर तुम इसी तरह से मेहनत करते रहे तो अगली बार बाकी विषयों के साथ तुम गणित में भी अच्छे नंबर लाओगे।”
यहां पर ध्यान दीजिए कि अगर आप उसे यह बात कहते तो कैसा रहता कि “और बाकी तो ठीक है ‘लेकिन’ गणित में तुम्हारे नंबर बहुत कम आए हैं। यह अच्छे से पढ़ाई ना करने का नतीजा है।” आप सोचिए आपको अपनी बात कहने का कौन सा तरीका पसंद आया। मुझे लगता है कि पहले नंबर पर कही गई बात सही है क्योंकि इससे बच्चे को आत्मग्लानि महसूस होने की बजाय, यह सोचकर आत्मविश्वास आएगा कि उसने जितना प्रयास किया, उसमें वह सफल रहा। आगे चलकर वह अपनी गलतियों से सीख कर और भी अच्छा करने का प्रयास करेगा।
➡️ ग्रुप में चर्चा करें –
जब भी आप बच्चों के साथ वक्त बिताएं तो यह ध्यान रखें कि वह समय पूरी तरह से क्वालिटेटिव हो और आप अपनी बात कहने के साथ-साथ बच्चे से भी किसी विषय पर राय लें। सेल्फ कॉन्फिडेंस बढ़ाने के लिए ग्रुप में चर्चा करना बहुत ही अच्छा विकल्प है। क्योंकि इसमें बच्चा बिना किसी डर के अपनी राय देता है, जिससे उसे खुद की वैल्यू का पता चलता है। एक अच्छा टॉपिक चुनकर उस पर बात करके, आप अपने बच्चे के सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ावा देने में मदद कर सकते हैं। इसके लिए आप उसे स्कूल की छोटी-छोटी भाषण या वाद-विवाद जैसी प्रतियोगिताओं में भी हिस्सा लेने के लिए गाइड करें। ऐसा करने से वो दूसरे लोगों के अनुभव का भी लाभ उठा पाएंगे।
➡️ इमेजिनेशन करने दें –
अक्सर अपने देखा होगा, जब बच्चे अपने माता-पिता से तरह-तरह के सवाल पूछते रहते हैं तो उनके पैरेंट्स यह कहकर उन्हें डांट लगा देते हैं कि “ज्यादा मत बोला कर, जाकर कुछ और कर ले, हमें परेशान मत कर,” या कुछ ऐसे वाक्य जिनसे बच्चे का मन खराब होता है या उसे बुरा फील होता है। आपके ऐसा करने पर उसको यह महसूस होगा कि माता-पिता से कुछ भी पूछना एक अपराध है।
जिसके कारण उसकी इच्छाएं, कल्पना या पूछने की जिज्ञासा अंदर ही दब जाएगी और उनका दमन होना शुरू हो जाएगा। दूसरे बच्चों के मुकाबले वह भावनात्मक रूप से असंतुलन की स्थिति में होने के कारण सेल्फ कॉन्फिडेंट नहीं बन पाएगा। इससे अच्छा यही होगा कि जितना हो सके आप उनके सवालों का जवाब दें और अलग अलग टॉपिक्स के प्रति उनकी जिज्ञासा को बढ़ाने में मदद करें। अपने प्रश्नों का उत्तर मिलने के कारण बच्चा कॉन्फिडेंट होकर आपके लिए नए-नए सवाल पेश करता रहेगा।
➡️ फेलियर के लिए तैयार करें –
स्वाभाविक है कि जीवन में असफल होने पर हम निराश हो जाते हैं। थोड़े समय के लिए यह निराशा सही है। लेकिन लंबे समय तक नुकसानदायक साबित हो सकती है। जिससे मेंटली कंडीशन पर बुरा असर पड़ सकता है। क्योंकि जीवन में जो हुआ उस पर हमारा वश नहीं है लेकिन यह तो सदा से ही हमारे वश में रहा है कि हमने उस घटना के प्रति क्या अनुभव किया, क्या सीखा और उसके साथ कैसे पेश आए।
सफलता, खुशी और आत्मविश्वास को बढ़ावा देती है। मगर असफलता एक और नया प्रयास करने के लिए प्रेरित करती है। पेरेंट्स द्वारा बच्चे को यह सिखाना आवश्यक है कि अपनी फील्ड में वह सक्सेस हो जाए तो अच्छी बात है लेकिन फेल होने पर उसे अपना आत्मविश्वास नहीं खोना और गलतियों को पहचान कर कॉन्फिडेंस के साथ एक नये प्रयास के लिए तैयार होना है। पेरेंट्स के ये शब्द एक बच्चे को हार के बाद भी फिर से उठने में बहुत मदद करते हैं।
➡️ प्रयासों की तारीफ करें –
बहुत से पेरेंट्स मैंने देखे हैं कि वो कुछ अच्छा करने पर बच्चे की तारीफ़ करते हैं लेकिन नाकामयाब रहने पर उसको ताने देते हैं या डांट लगाते हैं। अगर आप अच्छे पेरेंट्स बनना चाहते हैं तो ऐसा करने से बचें। भगवान श्री कृष्णा कहते हैं कि कर्म करना हमारे हाथ में है मगर फल ( Result ) पर हमारा अधिकार नहीं है। ज़रूरी नहीं कि हमारे प्रयास हमेशा हमें सक्सेस दिलाएं।
अगर आपके बच्चे ने अच्छा प्रयास किया है, इसके बावजूद भी वह फेल हो गया तो घबराएं नहीं और उसको आत्मग्लानि महसूस ना होने दें। इसके बजाय आप उसके प्रयासों की तारीफ़ करें ताकि वह आत्मविश्वास के साथ फिर से एक नई शुरुआत कर सके। ध्यान रखें कि कभी भी बच्चे की तुलना दूसरों से ना करें। नहीं तो वह अपने आप को कम समझने लगेगा और उसके अंदर सेल्फ कॉन्फिडेंस की कमी आएगी। बशर्ते आप प्रेरणा के तौर पर दूसरे लोगों का उदाहरण या खुद का उदाहरण उसके सामने पेश कर सकते हैं।
➡️ सोशल मीडिया का इफ़ेक्ट –
सोशल मीडिया का सही और सीमित उपयोग हमें बहुत कुछ सिखाने में मदद करता है। लेकिन लगातार इसके गलत प्रभाव के कारण हमारी ज़िंदगी तहस-नहस हो जाती है। बच्चे सोशल मीडिया के प्रभाव में आकर अपनी तुलना स्क्रीन पर दिखाए गए लोगों से करने लगते हैं। अधिकतर मामलों में वो वास्तविकता से बहुत दूर होते हैं लेकिन अनजान होने के कारण बच्चे इस बात को समझ नहीं पाते और उनके जैसा बनने की नाकाम कोशिश करते हुए खुद पर डाउट करने लगते हैं।
जिसके कारण उनके आत्मविश्वास में कमी आती है और वो सही रास्ते से भटक जाते हैं। पेरेंट्स को यह ध्यान रखना होगा कि वो बच्चे को सोशल मीडिया से बचाएं या अन्य विकल्प के तौर पर उनको वास्तविकता से अवगत कराएं और इसका सही उपयोग करना सिखाएं। नहीं तो यहां पर परोसी जाने वाली सामग्री से भ्रमित होकर, बच्चे भविष्य में आत्मविश्वास की कमी के कारण पीछे ही रह जाएंगे।
➡️ डर ख़त्म करने में मदद करें –
आगे बढ़ने के लिए डर हमारी सबसे बड़ी रुकावट है। बहुत बार देखा जाता है कि बच्चे पब्लिक में बोलते में डरते हैं। अगर ऐसा है तो आप अपने बच्चों को प्रेरित करें और बताएं कि जिस डर से वो डर रहे हैं, वह असली नहीं है। अगर आप इसको हराकर आगे बढ़ोगे तो यह आपको छोड़ देगा। मगर इससे पहले आपको निडरता और आत्मविश्वास के साथ काम करना होगा। डर आपको तब तक डराएगा, जब तक आप उस पर विजय हासिल नहीं कर लेते।
➡️ बैलेंस बनाएं –
बहुत लोगों की कहानियां सुनते हुए, मैंने एक छोटी सी बात सीखी है कि जो लोग अंडरकॉन्फिडेंट और ओवरकॉन्फिडेंट होते हैं, उनकी सफलता बहुत लंबे समय तक टिक नहीं पाती। लेकिन जो आत्मविश्वास के साथ संतुलित रहकर लगातार मेहनत करते हैं, अपनी जीत पर ओवरकॉन्फिडेंट नहीं होते और अपनी हार पर अंडरकॉन्फिडेंट नहीं होते। ऐसे लोग लगातार सीखते रहते हैं तथा प्रयास करते हुए सफलता के शिखर तक पहुंच जाते हैं। पेरेंट्स द्वारा बच्चों को यह बात बताना बहुत ज़रूरी है ताकि वो भविष्य में ऐसी गलती करने से बचें।
आशा करती हूं कि ऊपर दिए गए ये तरीके आपके बच्चे के सेल्फ कॉन्फिडेंस को बढ़ाने में पूरी तरह से मदद करेंगे। बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏