टीनएज, पेरेंट्स (parents) के लिए चुनौती जानें समस्याएं और समाधान

पेरेंट्स के लिए, बच्चों की टीनएज कई तरह की प्रॉब्लमस खड़ी कर देती है। साइकोलॉजी में किशोरावस्था को ‘ समस्याओं की आयु ‘ भी कहा जाता है। विभिन्न तरह के शारीरिक और मानसिक परिवर्तन के कारण हम स्पष्ट रूप से नहीं कह सकते कि ऊर्जा के आवेग में बच्चा किस रास्ते पर चल पड़े। इसलिए ऐसी परिस्थिति में माता-पिता (parents) को हर कदम पर समझदारी और संयम से काम लेना पड़ेगा। उम्मीद है यह आर्टिकल आपके बच्चों को टीनएज में आने वाली समस्याएं और समाधान के बारे में जानने में मदद करेगा।

➡️ Physical beauty को अधिक महत्व देना –

हर इंसान चाहता है कि मैं सबसे सुंदर दिखूँ। टीनएज ऐसी आयु है, जिसमें लड़का या लड़की लोगों की नज़रों में अपने आप को सुंदर दिखाने का पूरा प्रयास करते हैं। अपने आपको खूबसूरत दिखाना समस्या नहीं है लेकिन जब यह एक लिमिट को पार कर देती है तो समस्या बन जाती है। दिखावे के कारण बच्चे अपने मुख्य लक्ष्य से भटक जाते हैं। अगर वो अपनी शारीरिक सुंदरता से संतुष्ट नहीं होते तो उनको उदासीनता, चिंता, डिप्रेशन जैसी समस्याओं का सामना करना पड़ सकता है।

➡️ सेक्सुअल प्रॉब्लम्स –

मनोविज्ञान के अनुसार काम शक्ति का विकास तीन अवस्थाओं से होकर गुज़रता है – स्वप्रेम, समजातीय कामुकता ( Homosexuality ) तथा विषमजातीय कामुकता ( Heterosexuality )। इस उम्र के बच्चों में काम ऊर्जा भरपूर होने के कारण उनको समझ नहीं आता कि वो अपनी ऊर्जा को किस दिशा में लगाएं। इस असहजता और ज्ञान के अभाव के कारण बहुत सारे लड़के लड़कियां ऐसी गलतियां कर बैठते हैं, जिसके कारण उन्हें बाद में पछतावा और उदासीनता हाथ लगती है। जो उनके आत्म सम्मान को ठेस पहुंचती है।

➡️ अग्रेसिव बिहेवियर –

बदलते समय में सोशल मीडिया के प्रभाव के कारण अनेक किशोर गुस्से भरा व्यवहार दिखाने में अपनी शान समझते हैं। स्कूल या कॉलेज में अपने आप को ऊंचा दर्जा देने के लिए, वो छोटी सी बात पर भी लड़ाई झगड़ा करने के लिए तैयार हो जाते हैं। ऐसा करना उनके व्यक्तित्व को गलत रूप से प्रभावित करता है। अपना हक जमाने का प्रयास करते रहने के कारण, उनको समझ नहीं आता कि वो जिस रास्ते पर चल रहे हैं, वह उनके लिए बहुत सारी समस्याएं खड़ी कर सकता है।

➡️ ड्रग्स का गलत प्रयोग –

टीनएज में नए दोस्त बनने के कारण उनके व्यक्तित्व को पहचानना मुश्किल होता है। ग्रुप में जब कोई एक व्यक्ति भी नशीले पदार्थ का प्रयोग करने के लिए अपने दोस्तों से यह कहकर जिद्द करता है कि “एक बार में कुछ नहीं होता, किसी को पता नहीं लगेगा”, तो उसके दूसरे दोस्त भी उसकी बात मान लेते हैं। मगर उन्हें इस बात का पता नहीं होता कि कब उनको ड्रग्स की आदत लग गई। ऐसे पदार्थों को लगातार लेने से उनमें मेंटली और फिजिकली चेंज होने होते हैं। जो उनके व्यक्तित्व और सामाजिक समायोजन को और भी कठिन बना देते हैं।

➡️ इमोशनल instability –

हार्मोनल चेंज के कारण टीनएज के बच्चे अपने आप को भावनात्मक रूप से असहज महसूस करने लगते हैं। थोड़ी सी असफलता मिलने पर भी उदास हो जाना, अपनी आलोचना सुनते ही अग्रेसिव हो जाना, बहुत जल्दी क्रोधित हो जाना आदि लक्षण emotional instability की ओर संकेत करते हैं। जो उनके मानसिक विकास को गलत ढंग से प्रभावित करते हैं।

➡️ खुद को पहचानने की समस्या –

जब कोई बच्चा यह नहीं समझ पाता कि वह कौन है और उसे जीवन में क्या करना चाहिए। तब वह कुछ ऐसा करने लगता है जो बाकी लोग कर रहे हैं या फिर वह कुछ ऐसा करने की इच्छा रखता है, जो समाज के लोग उसे करते हुए देखना चाहते हैं। हो सकता है ऐसी स्थिति में समाज को देखकर, उसके जीवन में भटकाव आ जाए।

➡️ अन्य समस्याएं –

ऊपर दी गई विभिन्न प्रोब्लम्स के अलावा भी अनेक ऐसी समस्याएं हैं, जो टीनएज के बच्चों में देखने को मिलती हैं। जैसे चिड़चिड़ापन, विद्रोही प्रवृत्ति, एजुकेशनल प्रॉब्लम , परिवार के साथ तालमेल ना बन पाना, आत्महत्या, झूठ बोलना, सामाजिक संबंधों में परेशानी आदि। टीनएज की इन समस्याओं का समय पर समाधान करना बहुत जरूरी है।

समाधान –

समस्याओं के बाद समाधान की बात आने पर, यह समझना ज़रूरी है कि सबसे पहले पेरेंट्स को अपने बच्चों की ज़िम्मेदारी लेनी होगी। अन्यथा आपके सही मार्गदर्शन के अभाव में वो भटक सकते हैं।

➡️ सही वातावरण दें –

जिन बच्चों को अपने माता-पिता से प्यार नहीं मिलता। वो इसकी कमी को पूरा करने के लिए समाज की तरफ चले जाते हैं। जिसके चलते अफेयर्स के कारण वो अपने माता-पिता की वैल्यू को कम आंकने लगते हैं। अक्सर माता-पिता के रिश्तों में तकरार होने के कारण बच्चे जाने अनजाने उसका फायदा उठाने लगते हैं और किसी अन्य इंसान के साथ अपनी एक अलग दुनिया बनाने की कोशिश करते हैं। पेरेंट्स को चाहिए कि वो अपने बच्चों के साथ दोस्त जैसा व्यवहार करके उनसे प्रेम करें, उनको समझें, उनकी उम्र के अनुसार असहजता को कम करने में मदद करें ताकि बच्चे तनावपूर्ण जीवन से बाहर निकल कर, अपने लिए नए अवसर खोज सकें।

➡️ समय दें –

ज़ाहिर सी बात है कि आप जो उम्मीदें अपनी उम्र के अनुसार अपने बच्चों से कर रहे हैं, उन पर वो ख़रे नहीं उतरते। इसीलिए परिस्थितियों को समझने में बच्चों को समय दें और उनके साथ पूरी तरह से खुलकर बात करने का प्रयास करें। उन विषयों पर भी बात करें, जिन पर अधिकतर पेरेंट्स अपने बच्चों से बात करने में शर्माते हैं। इसका फायदा यह होगा कि उनके अंदर किसी तरह की असमंजस्ता नहीं रहेगी और वो भी कोई समस्या आने पर आपके साथ खुलकर चर्चा करने में सहज महसूस कर सकेंगे।

➡️ मेंटल एक्टिविटीज पर फ़ोकस करें –

जब भी आपको लगे कि आपका बच्चा गलत रास्ते पर जा रहा है तो उसे प्यार से समझाएं कि बाहरी सुंदरता या ये सब चीजें तो कुछ ही पलों की हैं। लेकिन अगर तुम सही मार्गदर्शन में अपनी मानसिक स्थिति को बेहतर रखने का प्रयास करोगे तो जीवन में कहीं भी मार नहीं खाओगे। कुछ समझ ना आने पर आप बच्चे के लिए काउंसलिंग की व्यवस्था भी कर सकते हैं।

➡️ समझाने का अलग तरीका –

बहुत से पेरेंट्स ऐसे होते हैं जो अपने बच्चों को प्रत्यक्ष रूप से डांट लगाते रहते हैं या कभी-कभार उन पर हाथ भी उठा देते हैं। मगर ऐसा करना उचित नहीं है। अगर आपको लगता है कि आपके बच्चे ने कुछ ऐसी गलती की है, जिसके कारण उसका जीवन खतरे में पड़ सकता है तो प्रत्यक्ष रूप से उसको डांटने की बजाय अप्रत्यक्ष रूप से समझाने की कोशिश करें। आप इसमें खुद का या किसी अन्य व्यक्ति का उदाहरण लेकर भी समझा सकते हैं कि गलतियां तो अक्सर होती रहती हैं। हमारे जीवन में भी हुई थीं। मगर यह मायने रखता है कि हम उनसे सीख कर आगे बढ़ते हैं या नहीं। पेरेंट्स के ऐसा करने से, इस उम्र के बच्चों में अपने माता-पिता के प्रति क्रोध के भाव नहीं आते और उनके आत्मसम्मान को भी ठेस नहीं पहुंचती। समय रहते परिस्थितियों को आप जितना संयम से संभालेंगे, उतना ही आपके और बच्चों के जीवन के लिए बेहतर होगा।

➡️ स्वतंत्रता दें और भरोसा बनाएं –

जिन बच्चों को परिवार से स्वतंत्रता नहीं मिलती, उनकी इच्छाएं दब जाती हैं। वो छोटी-छोटी चीज़ों के लिए भी अपने आप में असमर्थता महसूस करते हैं। ऐसे बच्चों की अपने माता-पिता पर निर्भरता ज्यादा होती है। इसलिए पेरेंट्स के लिए यह आवश्यक है कि वो अपने बच्चों को जायज़ स्वतंत्रता दें और उनको भरोसा दिलाएं कि कुछ भी सही या गलत होने पर वो उनके साथ हैं और असहजता की स्थिति में उनके मार्गदर्शन के लिए तैयार हैं। बच्चों को यह भी समझाएं कि समाज और संस्कृति को ध्यान में रखते हुए अगर वो कुछ हद तक आप पर निर्भर हैं तो इसके लिए उन्हें हीन भावना का शिकार होने की आवश्यकता नहीं है।

➡️ ताका झांकी ना करें –

पेरेंट्स की उम्र चाहे कितनी ही क्यों ना हो। मगर यह ज़रूरी नहीं कि आप हर चीज में परफेक्ट हों। बच्चों पर बहुत ज्यादा बंदिशें लगाना और हर छोटी चीज के लिए उनसे प्रश्न करना, आपके लिए मुसीबत खड़ी कर सकता है। चाहे वह मोबाइल को लेकर है, दोस्तों के लिए है या किसी अन्य चीज के लिए। बशर्ते आप अपने अनुभव उनके साथ शेयर करें। कदम कदम पर उनका उचित मार्गदर्शन करते रहें और टीनएज में बदलावों के कारण, होने वाली गलतियां के बारे में जागरूक करते रहें ताकि कुछ भी गलत करने से पहले वो आपके प्यार को ध्यान में रखते हुए, आपकी बातों को स्मरण कर सकें और अपने आप को रोक सकें।

➡️ अन्य समाधान –

चरित्र निर्माण के लिए बच्चों को धार्मिक और नैतिक शिक्षा देना, सफलता के लिए व्यवसायिक निर्देशन देना, प्रतिभा में निखार लाने के लिए विशिष्ट रुचियों पर ध्यान देना तथा आत्म नियंत्रण आदि भी ज़रूरी है। बच्चों के समग्र विकास के लिए, पेरेंट्स को विभिन्न पहलुओं को ध्यान में रखते हुए काम करना होता है।

निष्कर्ष –

समाज में पनप रही गलत प्रवृत्तियों के बीच बच्चों को सही रास्ते पर लाकर संस्कारवान बनाना, सभी पेरेंट्स के लिए एक बहुत बड़ी चुनौती है। मगर उम्मीद है कि आपके द्वारा किए गए सही प्रयास और मेहनत ज़रुर रंग लाएगी।
धन्यवाद 🙏

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