कई बार हम देखते हैं कि जिन परिवारों की आर्थिक स्थिति अच्छी होती है वहां पेरेंट्स (parents) अपने बच्चों की सफलता के लिए काफी पैसे खर्च करते हैं उनके टैलेंट को चार चांद लगाने के लिए हर फैसिलिटी प्रोवाइड करवाते हैं लेकिन क्या आपको पता है कि बहुत से बच्चे इंटेलिजेंट और टैलेंटेड होेने के बावजूद भी अपने दोस्तों या अन्य लोगों के बीच वह पहचान नहीं बना पाते जो बननी चाहिए। आईए जानते हैं इसके पीछे सबसे बड़ी वजह क्या है.
Note :-
यह कहानी सत्य घटना पर आधारित है मगर इस आर्टिकल में दिया गया लड़की का नाम काल्पनिक है।
Lesson for parents – girl’s story
उस दिन मुझे बहुत डर लग रहा था लेकिन क्योंकि प्रतियोगिता में मेरा नाम शामिल हो चुका था तो जैसे तैसे करके मैं मंच पर गई। मेरे सामने करीब करीब 300 स्टूडेंट्स बैठे थे। सभी की नजरें मेरे बोलने का इंतजार कर रही थी। हालांकि पहली बार कुछ नया काम करते हैं तो घबराहट होना स्वाभाविक है ठीक मुझे भी ऐसा ही फील हो रहा था। मैंने एक लंबी सांस ली और बोलना शुरू किया। 2 मिनट तक लगातार बोलते के बाद घबराहट के कारण मैं थोड़ा सा अटक गई। तभी लैक्चर स्टैंड के पास बैठे टीचर ने हिम्मत बंधाते हुए कहा कि कोई बात नहीं, बोलो बेटा बहुत अच्छा बोल रहे हो। मैंने फिर से बोलना शुरू किया और स्पीच खत्म करके अपनी जगह जाकर चैन की सांस ली।
काव्या नाम की लड़की मेरी क्लासमेट थी। इस बात को लेकर उसे खुद पर गर्व था कि स्कूल टाइम से लेकर अब तक वह हर स्पीच कंपिटीशन में फर्स्ट आई थी। उसकी इंग्लिश लैंग्वेज पर इतनी अच्छी पकड़ थी कि बोलते समय वह एक शब्द भी नहीं भूलती थी तो मेरे अनुसार तय था कि आज भी वह प्रथम स्थान पर ही आएगी हालांकि मेरे मन में कोई भी स्थान प्राप्त करने की लालसा नहीं थी
अपनी बारी का इंतजार करते हुए उसने स्पीच दिया सभी बच्चों ने जोरदार तालियां बजाई। जैसे ही परिणाम घोषित हुआ काव्या ने प्रथम स्थान हासिल किया। उस दिन मेरी खुशी का ठिकाना नहीं रहा जब सेकंड पोजीशन के लिए मेरा नाम बोला गया। मैंने काव्या को Congratulations बोला और उसने भी मुझे बहुत-बहुत बधाई देते हुए कहा कि कोई बात नहीं प्रतियोगिता में ऐसा होता रहता है। इसके बाद हम दोनों अपने-अपने घर के लिए निकल पड़ीं।
अगले दिन कॉलेज में आकर काव्या ने अपनी और मेरी जीत का बखान पूरी क्लास के बच्चों के सामने कर दिया और सभी बच्चों ने हमें ढेर सारी शुभकामनाएं दी।
कुछ महीनों बाद एक नोटिस आया कि कॉलेज में भाषण प्रतियोगिता होने जा रही है। कोई भी बच्चा अपना नाम लिखवा सकता है। पिछली बार की तरह इस बार भी हम दोनों ने इसमें हिस्सा लिया। मैंने सोचा कि यह मेरे लिए खुद को इंप्रूव करने का एक और अवसर है तो पहले से ज्यादा तैयारी करने का हर संभव प्रयास करना चाहिए। हालांकि इस बार भी मेरे अंदर थोड़ी घबराहट थी कि इतने सारे बच्चों के सामने कैसे बोल पाऊंगी। मगर एक बार स्पीच देने के बाद थोड़ा कॉन्फिडेंस भी आ गया था।
जिस दिन का हम दोनों को बेसब्री से इंतजार था वह दिन आखिरकार आ ही गया और प्रतियोगिता शुरू की गई। कुछ बच्चों के भाषण देने के बाद काव्य को मंच पर बुलाया गया हर बार की तरह इस बार भी उसने अच्छा स्पीच दिया। जैसे ही मेरी बारी आई मैंने मंच पर जाकर बोलना शुरू किया और बिना रुके लगातार 4 मिनट तक मैंने अपना भाषण समाप्त कर दिया। मैं मन ही मन बहुत खुश हुई यह सोचकर कि चलो बढ़िया है पिछली बार से तो अच्छा ही हुआ।
जैसा कि सभी बच्चों को रिजल्ट का इंतजार था तो वह घड़ी भी आ गई।
तीसरे स्थान पर किसी लड़की का नाम बोला गया, दूसरे स्थान पर काव्य का और पहले स्थान पर मेरा नाम, जो मैंने कभी सपने में भी नहीं सोचा था। जैसे ही काव्या को पता चला कि उसकी सेकंड पोजीशन आई है तो उसका मुंह उतर गया उसके चेहरे से हंसी मानो गायब ही हो गई। मैं बधाई देने के लिए उसकी तरफ मुड़ी ही थी कि वह गुस्से में घर चली गई।
काव्या के कहे गए वो शब्द कि कोई बात नहीं प्रतियोगिता में ऐसा होता रहता है, आज उन्हें ही स्वीकार करना उसके लिए चुनौती बन गए।
मैंने अपने घर जाकर उसको बहुत-बहुत बधाई का मैसेज भेजा लेकिन तब तक उसके फोन से मेरा नंबर ब्लॉक हो चुका था। अगले दिन जैसे ही मैं कॉलेज में आई तो क्लास के किसी भी बच्चे ने उस प्रतियोगिता का कोई भी जिक्र नहीं किया था। कॉलेज क्लास के दिनचर्या फिर से शुरू हो गई। लेकिन उस दिन के बाद काव्या के नेचर का लगभग स्टूडेंट्स को पता चल चुका था।
शिक्षा –
कभी-कभी हमें जीतने की इतनी आदत हो जाती है कि हम छोटी सी हार भी बर्दाश्त नहीं कर पाते। एक छोटा सा फेलियर हमारे अहंकार को इतनी बुरी तरह से तोड़ता है कि हम अंदर से पूरी तरह हिल जाते हैं। हर पेरेंट्स को यह ध्यान रखना चाहिए कि बच्चों को सक्सेस के साथ-साथ फेलियर का सामना करना और कभी अहंकार ना करने जैसी चीजें भी सिखाएं।