Parents और बच्चों में Communication Gap कैसे ख़त्म करें

पेरेंट्स (parents) होने के तौर पर, अगर आप इस बात को लेकर परेशान हैं कि आपकी परवरिश में कमियां ही कमियां हैं, तो घबराएं नहीं क्योंकि हर चीज अपने आप में पूर्ण नहीं होती। बच्चों की परवरिश करना, सिर्फ़ एक बार में समाप्त होने वाला काम नहीं है, बल्कि यह निरंतर चलने वाली प्रक्रिया है। जिसमें हर कदम पर माता-पिता को नई – नई चुनौतियों का सामना करना पड़ता है। बढ़ती उम्र में हार्मोनल चेंज के कारण, बच्चों का बाहर के लोगों की तरफ झुकाव होना स्वाभाविक है। ऐसी परिस्थिति में माता-पिता को समझदारी और बातचीत के माध्यम से बच्चों के साथ धैर्य से काम लेने की आवश्यकता है। इस आर्टिकल के माध्यम से आप बच्चों के साथ होने वाले कम्युनिकेशन गैप को काफ़ी हद तक ख़त्म कर सकते हैं।

➡ उम्मीदें ना रखें –

अधिकतर अभिभावक (parents) अपने बच्चों को कोई भी बात, एक… दो… चार बार समझाने के बाद यह सोचने लगते हैं कि उनका बच्चा अब भविष्य में कभी भी इस गलती को नहीं दोहराएगा। ऐसी सोच या उम्मीद रखना, पेरेंट्स के लिए उचित नहीं है।

जिस उम्र की समझ के अनुसार आप बच्चों को समझा रहे हैं। ज़रूरी नहीं कि उस लेवल पर वो आपकी बात समझ पाएं। उम्र के बदलाव के अनुसार हर बच्चा गलती करता है। आप उनको स्वीकार करें और बातचीत जारी रखते हुए, अपने बच्चों को प्यार से समझने की कोशिश करें। शायद ऐसा ना हो कि बड़ा होता बच्चा, आपको देखकर गलत व्यवहार सीखता है। हो सकता है वह अपनी उम्र के लोगों या समाज को देखकर ऐसा करता है। लेकिन उनको सही रास्ते पर लाना पेरेंट्स की ज़िम्मेदारी बनती है।

➡ ज्यादा सख़्ती ना बरतें –

बच्चों के साथ ज्यादा सख़्ती से पेश आना, कम्युनिकेशन गैप को बढ़ावा देता है। कई पेरेंट्स (parents) अपने बच्चों के साथ निर्दयता से पेश आते हैं। ( जैसे स्कूल ना जाने पर बच्चों को मारना पीटना, कम नंबर आने पर बुरी तरह डांटना, अप्रत्यक्ष रूप से ताने देना, बढ़ती उम्र में गलती होने पर भावनात्मक रूप से ब्लैकमेल करना आदि। ) इन हालातो में अधिकतर बच्चों का धीरे-धीरे अपने माता-पिता से विश्वास उठने लगता है और उनके अंदर अभिभावकों के प्रति क्रोध घृणा जैसे भाव पनपने लगते हैं। बेहतर है आप अपने बच्चों के दोस्त और अच्छे सलाहकार बन कर रहें।

➡ भरोसा बनाए रखें –

किसी भी रिश्ते को लंबे समय तक बनाए रखने के लिए ‘भरोसा’ सबसे पहली शर्त है। किसी से विश्वास उठाना ठीक वैसे ही है, जैसे टूटे धागे में गांठ लगाना। जिसको हम जोड़ तो सकते हैं लेकिन वापस पहले जैसा नहीं बना सकते।

अगर आप चाहते हैं कि आपके बच्चे आपसे हर छोटी-मोटी बात शेयर करते रहें, तो भूल कर भी उनको यह एहसास मत दिलाइए कि आप हर परिस्थिति में उनके साथ नहीं हैं। अन्यथा वह दिन दूर नहीं, जब बातचीत के अभाव में आपके बच्चे आपसे बातें छुपाने लगेंगे।

➡ प्रतिक्रिया देने से पहले सुनें –

उस बात को दो हफ़्ते हो गए। जब नौवीं क्लास में पढ़ने वाली पड़ोस की लड़की मेरे पास आकर, कमरे में चुपचाप बैठ गई।

“ओह! यह हंसने वाला चेहरा आज उदास क्यों है… क्या हुआ ?” मैंने पूछा।

” अरे! कुछ नहीं बस ऐसे ही,” बात टालने की कोशिश करते हुए, उसने कहा।

” तुम्हारा चेहरा बता रहा है कि कुछ तो हुआ है,” मैंने थोड़ा हंस कर कहा।

” स्कूल में आज मेरा जोर से पेट दर्द करने लगा। मैंने मैडम को कहा कि मुझे घर भेज दो। मैडम ने यह कह कर मुझे घर नहीं जाने दिया कि तेरा तो रोज का काम है। फिर मैं रोते हुए, आधी छुट्टी का इंतज़ार करने लगी और टीचर से पूछकर, बैग लेकर घर आ गई। घर आते ही मैंने मम्मी को बात बताई तो उन्होंने भी मुझे डांट लगाई कि ज़रूर इसमें गलती तेरी ही है। बस इतनी सी बात थी।”

एक ही सांस में मानो उसने सारी गाथा पढ़ दी हो। लेकिन यह सिर्फ़ उनकी बात नहीं है। लगभग परिवार में यही देखने को मिलता है कि पेरेंट्स बच्चों को छोटा समझकर, उनकी बात सुनने के बजाय, अपना ज्ञान देने पर तुले रहते हैं। यह कम्युनिकेशन गैप ख़त्म करने का नहीं बल्कि बढ़ने का तरीका है।

यह बहुत मायने रखता है कि आप कितने ध्यान और धैर्य के साथ अपने बच्चों को सुनते हैं। तत्पश्चात पूरी समस्या सुनने पर ही, सकारात्मक प्रतिक्रिया के रूप में आप अपनी राय दें।

➡ हक ना जतायें –

अधिकतर पेरेंट्स (parents) द्वारा बच्चों को यह महसूस कराया जाता है कि उनको अपने माता-पिता के कंट्रोल में रहना होगा। क्योंकि वो उसके पेरेंट्स है इसलिए उनको बच्चों के साथ कैसा भी व्यवहार करने का पूरा-पूरा हक है। लेकिन परवरिश की यह शैली किसी भी प्रकार से उचित नहीं है। आप ऐसा करके अपने बच्चों के विकास में अवरोध पैदा कर रहे हैं, फिर संवाद के माध्यम से रिश्ते को कायम रखना तो बहुत दूर की बात है।

अपने व्यक्तिगत जीवन के अनुसार सभी को समान रूप से स्वतंत्रता मिलनी चाहिए। चाहे वह बच्चे ही क्यों ना हों। पेरेंट्स के रूप में ज़िम्मेदारी निभाते हुए, यह हमेशा याद रखिए कि बच्चों को उम्र के हर पड़ाव पर आपके इमोशनल सपोर्ट की ज़रूरत पड़ेगी।

इसलिए आप जितना फ्रेंडली रहकर, अपने बच्चों के साथ समस्याओं का समाधान करने में मदद करेंगे। उतने ही आने वाले जीवन के लिए आसानी होगी। बशर्ते कुछ परिस्थितियों में आपको सख़्त होने की भी ज़रूरत है।

➡ दूसरों से सीखें –

आप सोच कर देखिए, वो पेरेंट्स कितने बदकिस्मत होंगे। जिनके खुद के बच्चे अपने मन की बात उनसे नहीं कह पाते। कहना तो दूर की बात, जैसे-जैसे वो बड़े होते जाते हैं, चेहरे से पता भी नहीं लगने देते कि उनके अंदर कुछ समस्या चल रही है। ऐसे बच्चे अपने आप को बाहर से ऐसा दिखाते हैं कि उनकी लाइफ़ बहुत अच्छी है। लेकिन अंदर ही अंदर ऐसा सोचते हैं कि भगवान ऐसी ज़िंदगी किसी को ना दे।

क्योंकि शायद वो पेरेंट्स अपने बच्चों पर वह विश्वास बना ही नहीं पाए कि उनके बच्चे बिना डरे, अपने पेरेंट्स को सब कुछ बता सके। ऐसे अभिभावकों से सीख लें ताकि भविष्य में आप इतनी बड़ी गलती करने से बच जाएं।

निष्कर्ष :-

बच्चों की शुरुआती उम्र में, पेरेंट्स को उनके साथ बातचीत करने में कोई भी समस्या नहीं आती। बाद में धीरे-धीरे हो सकता है आप यह सोचकर उनके साथ संवाद करने में असहज महसूस करें कि क्या ही बात करें। लेकिन ऐसा करना आपके लिए बाधा खड़ी कर सकता है।
बेहतर पालन पोषण के लिए आप उनकी असफलताओं से निराश न होकर, उनको स्वीकार करें और किशोरावस्था में होने वाले बदलावों से परिचित कराएं। अपने जीवन के अनुभवों को सांझा करना और बच्चों को आने वाली चुनौतियों के लिए तैयार करना, बेहतर परवरिश की निशानी है। बशर्ते आप बच्चों की छोटी उम्र से ही इस रिश्ते को सींचना शुरू करें।

बहुत-बहुत धन्यवाद 🙏🏻

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