प्रतिस्पर्धा के युग में जहां पेरेंट्स अपने बच्चों को पढ़ाई की तरफ धकेल रहे हैं, वहीं दूसरी तरफ जीवन से जुड़े ऐसे अनेक पहलू पीछे छूट जाते हैं। जिन पर हम चर्चा करना ही भूल जाते हैं। अगर आप अपने बच्चों को पढ़ाई के साथ-साथ ऐसे विषयों से भी जोड़ते हैं तो सच मानिए यह आपके लिए सोने पर सुहागे वाली बात हो जाएगी।
स्मार्ट परवरिश: बच्चों में अच्छे आदतों और मूल्यों का विकास
परवरिश में ध्यान रखने योग्य कुछ महत्वपूर्ण बातें:-
समय का प्रबंधन :-
अक्सर समय का दुरुपयोग आपके बच्चों के लिए विभिन्न तरह की चुनौतियां लेकर आ सकता है। इससे बचने के लिए है ज़रूरी है कि अभिभावक उन्हें शुरुआत से ही समय का प्रबंधन करना सिखाएं।
प्राथमिकता निर्धारित करना
महत्वपूर्ण कार्यों को पहले पूरा करना हमें मानसिक तनाव से दूर रखने में मदद करता है। अभिभावकों को चाहिए कि वो अपने बच्चों को विभिन्न तरह के गतिविधियों में से कुछ खास गतिविधियों ( जैसे स्कूल का होमवर्क पूरा करना ) को समय पर पूरा करने में उनकी सहायता करें।
समय का विभाजन करना
बच्चों की प्रकृति को ध्यान में रखते हुए यह महत्वपूर्ण नहीं कि हर रोज, हर काम, एक निश्चित समय पर ही निपटाया जाए। इसके लिए उनकी समय सारणी में लचीलापन होना बहुत आवश्यक है। पेरेंट्स को अपने बच्चों को समय का प्रबंधन करते समय यह सिखाना ज़रूरी है कि वो अपने दिन के 24 घंटा को कैसे उपयोग में लाएं। इसमें निम्नलिखित गतिविधियां शामिल हो सकती हैं-
- स्कूल का होमवर्क पूरा करना
- खेलना कूदना
- टीवी देखना
- दोस्तों के साथ घूमना
- भोजन करना
- नए-नए कार्य सीखने में वक्त बिताना
- विभिन्न तरह की चीजों से एक नई चीज बनाना
- पतंग उड़ाना
- माता पिता के साथ मौज मस्ती करना आदि।
लक्ष्य निर्धारित करना
हालांकि बचपन को खुलकर जीना अपने आप में एक बहुत बड़ा लक्ष्य है। लेकिन फिर भी यदि अभिभावक चाहते हैं तो बच्चों में आत्मविश्वास पैदा करने के लिए उनको छोटे-छोटे टास्क दे सकते हैं। जैसे
- भाई बहन या दोस्तों के साथ किसी खेल में जीतना
- स्कूल का होमवर्क समय पर पूरा करना
- टीवी देखते हुए भोजन ना करना
- बोलते समय अपशब्दों का प्रयोग न करना आदि।
Note
इसके लिए आप उनको प्रयोग में आने वाली छोटी-छोटी चीजें उपहार स्वरूप दे सकते हैं ताकि उनके आत्मविश्वास को बढ़ावा मिल सके।
पैसों का प्रबंधन
आज के समय की ज़रूरतों को देखते हुए वित्तीय सुरक्षा के लिए पैसों का प्रबंधन करना बहुत ही महत्वपूर्ण है। सभी अभिभावकों के लिए यह ज़रूरी हो जाता है कि वो अपने बच्चों को फालतू खर्च करने की बजाय पैसों की बचत करना सिखाएं।
गुल्लक का प्रयोग करना
मुझे याद है, जब मैं छोटी होती थी तब मेरे पास दो गुल्लक होते थे। एक गुल्लक में मैं सिक्के इकठ्ठे करती थी और एक में नोट। पैसे बचाने और बिना वजह के खर्च ना करने की आदत मेरे अंदर बचपन से है और कहीं ना कहीं आज मुझे इसका बहुत बड़ा लाभ भी मिल रहा है।
सभी पेरेंट्स को अपने बच्चों में यह आदत शुरू से डालनी चाहिए ताकि भविष्य में यही छोटी-छोटी चीजें उनको बड़ा फ़ायदा पहुंचाए।
पैसे इन्वेस्ट करना
आज के समय में हमारे पास पैसों को बचाने और उनको कई गुना करने के बहुत सारे तरीके हैं। ऐसे में अभिभावकों को चाहिए कि वह अपने बच्चों के इकट्ठे किए हुए पैसों को खर्च न करके, किसी अच्छी कंपनी के स्टॉक, FD या किसी अच्छी स्कीम में लगा सकते हैं ताकि आने वाले कई सालों में यह पैसे कई गुना हो जाएं और बच्चों की पढ़ाई में या उनके किसी नए काम को शुरू करने में सहायता मिले।
पैसों से संबंधित बातचीत
बातचीत के माध्यम से अभिभावक अपने बच्चों के साथ रिश्ते को और भी बेहतर बना सकते हैं। जहां तक वित्तीय प्रबंधन की बात है सभी पेरेंट्स को चाहिए कि वो अपने बच्चों के साथ पैसों से संबंधित विषयों पर बातचीत करे जैसे कि आप अपने बच्चों से पूछ सकते हैं
आपके पास कुल कितने पैसे हो गए, गिन कर बताएं अगर हर साल हमें इतने पैसों पर 15% रिटर्न मिलता है तो 10 सालों के बाद हमारे पास कितने पैसे हो जाएंगे।
विभिन्न तरह की वित्तीय स्कीमों, कंपनी, स्टॉक आदि के बारे में उनसे बातचीत करके उनके ज्ञान को बढ़ाने की कोशिश करें ताकि वो धीरे-धीरे इस विषय को और भी अच्छे से समझ पाने में समर्थ हों।
भोजन, पानी या अन्य वस्तुओं की कीमत समझाना
दुनिया में ऐसे मुद्दों को लेकर चर्चा होती रहती है, क्योंकि शिक्षित होने के बावजूद भी बहुत लोग ऐसी गलतियां करते पाए जाते हैं।
मुझे याद है कुछ समय पहले मैं ट्रेन से कहीं जा रही थी। रास्ते में एक स्टेशन पर जैसे ही ट्रेन रुकी, वहां पर लोगों की भीड़ इकट्ठा हो गई। यह जानने के लिए कि यहां पर क्या हो रहा है, मैंने ट्रेन की खिड़की से झांक कर देखा। वहां पर कुछ लोग भोजन बांटने की सेवा दे रहे थे। भूख ना होने के कारण हमने मना कर दिया। मेरे सामने वाली सीट पर बैठे आंटी जी ने बहुत सारी रोटियां और सब्जी ले लिए। लगभग 5 मिनट के बाद ट्रेन चल पड़ी। उन आंटी जी ने बड़ी मुश्किल से एक दो रोटी खाई होगी, इससे पहले कि मैं उनको रोक पाती। उन्होंने सारी रोटियां ट्रेन की खिड़की से बाहर फेंक दी। मुझे मन ही मन बहुत दुख हुआ लेकिन मैं कुछ नहीं बोल पाई।
इसलिए ज़रूरत है कि बच्चों को बचपन से ही ऐसी चीजें सिखाई जाएं जिनकी सच में आवश्यकता है।
पर्याप्त भोजन लेना
बच्चों की थाली में उतना ही भोजन परोसें, जितना वो खा सकें, भूखा रहने पर उनको दोबारा भोजन का पूछ सकते हैं, साथ में पहले खाए गए भोजन की तारीफ़ करना ना भूलें। इससे बच्चों में खाना बर्बाद ना करने की एक अच्छी प्रवृत्ति विकसित होगी तथा वे जहां भी जाएंगे पर्याप्त मात्रा में भोजन ग्रहण करेंगे।
पानी बचाना
देशभर में अनेक ऐसे इलाके हैं, जहां पर पीने लायक पानी भी नहीं पहुंच पाता। ऐसे में हमारी जिम्मेदारी बनती है कि हम पानी का बिल्कुल भी दुरुपयोग ना करें।
बच्चों को पानी में नहाना या उससे खेलना बहुत अच्छा लगता है। लेकिन हमें यह भी समझना चाहिए कि प्रकृतिक संसाधनों का दुरुपयोग करना हमें कितना महंगा पड़ सकता है।
नल में पानी आने पर अगर आपके बच्चे बहुत ज्यादा देर तक नहाते हैं या पानी बिना वजह के बर्बाद करते हैं तो उनको ऐसा करने से रोकें। उनको पर्याप्त मात्रा में पानी का प्रयोग करना सिखाएं।
नोट :-
हो सकता है बच्चे सवाल उठाएं कि हमें ऐसा क्यों करना चाहिए। इसके लिए आप उनके सामने अनेक तथ्य रख सकते हैं। भोजन और पानी से संबंधित फिल्में दिखा सकते हैं या ऐसे इलाकों में लेकर जा सकते हैं जहां पर लोग भोजन और पानी को लेकर विभिन्न तरह की परेशानियों का सामना करते हैं। बच्चे जब खुद अपनी आंखों से देखेंगे तो समझ जाएंगे कि मेरे माता-पिता सही कहते हैं, लेकिन इसके लिए आपको भी इन आदतों का पालन करना होगा।
भावनात्मक रूप से मजबूत बनाना
आपको पता होगा कि आज के दौर में IQ (Intelligence Quotient) से ज्यादा EQ (Emotional Quotient) मायने रखता है। क्योंकि बहुत से बच्चे जरा सी मुसीबत देखने पर घबरा जाते हैं या किसी के डांटने पर रोने लगते हैं। आज की नई जनरेशन के साथ कुछ ऐसी ही घटनाएं दिन भर घटती हैं, जिसमें हम अपने आप को भावनात्मक रूप से संतुलित नहीं रख पाते हैं। इसीलिए पेरेंट्स को चाहिए कि वो अपने बच्चों का ऐसी परिस्थितियों में सहयोग करें।
विश्वास बनाना
किसी पर भी विश्वास करना बहुत मुश्किल होता है लेकिन अभिभावक होने के नाते, आपको इस बात के लिए थोड़ा चिंतित होना पड़ेगा कि आपके बच्चे आप पर पूरी तरह से विश्वास कर पाएं। इसके लिए आप वो सभी कार्य करने से बचें, जिसके कारण बच्चों का भरोसा आपके प्रति डगमगाता है।
- बिना वजह के उनको ना डांटे
- बच्चों से छोटे-छोटे वादे करके उनको पूरा करने की कोशिश करें
- उनको विश्वास दिलाएं कि आप हर परिस्थिति में उनके साथ हैं
- बच्चों को सुनने की कोशिश करें। चाहे वो कितनी ही नीरसता भरी बात आपसे करें
- बच्चों को अपनी बात रखने का मौका दीजिए, ताकि उनको लगे कि परिवार में उनकी भी वैल्यू है।
सोने से पहले बातें करना
बच्चों के साथ अच्छे से वक्त बिताने का यह सबसे सही समय होता है। इसमें आप उनसे दिन भर की सभी बातों के बारे में चर्चा करें जैसे आज का दिन कैसा रहा, स्कूल में बिताया गया समय कैसा था, टीचर ने कैसे पढ़ाया, किसी से लड़ाई झगड़ा तो नहीं हुआ, स्कूल का माहौल अच्छा लगता है या नहीं, आज का भोजन खाने में कैसा था आदि ऐसी ही अनेक बातें चर्चा का विषय बन सकती हैं।
नज़र – अंदाज़ करना
बहुत सी ऐसी बातें होती हैं जिन पर अगर हम गौर ना करें तो जीवन को और भी खुशी से जी सकते हैं। एक अभिभावक के तौर पर आपको कुछ बातों पर बहुत ज्यादा ध्यान नहीं देना है जैसे बच्चों का अपने दोस्तों के साथ छोटा-मोटा झगड़ा, बिना वजह से किसी के साथ कहा सुनी, बच्चों को खेलते समय थोड़ी बहुत चोट लगा जाना आदि। आपके ऐसा करने से आपके बच्चों के अंदर भी धीरे-धीरे ऐसे अच्छे गुण आने लगेंगे।
नोट:-
आज के समय में बच्चों द्वारा लिए जा रहे गलत फैसलों को रोकने के लिए, पेरेंट्स और बच्चों में गैप का पूरी तरह से ख़त्म होना बहुत ज़रूरी है।
रिश्तेदारों से परिचित कराना
शैक्षणिक दौर और प्रतिस्पर्धा के युग में अधिकतर बच्चे सिर्फ़ पढ़ाई तक ही सीमित रह गए हैं। जिसके कारण उनके आस-पड़ोस या अपने परिवारों में घुलना मिलना बहुत कम हो गया है। यह एक चिंता का विषय है क्योंकि इससे उनके मस्तिष्क पर नकारात्मक प्रभाव पड़ता है। जो किसी भी मायने में सही नहीं है।
एक बार हमारे यहां दूर की रिश्तेदारी से चाचा जी और चाची जी आए, साथ में उनका एक बेटा (लगभग 14 – 15 वर्ष का) भी था। जैसे ही वह घर में आए, सभी से हाल-चाल पूछा और अपने लड़के से कहा कि बेटा इनको ( मेरे mother ) नमस्ते करो, उनके कहने पर उसने नमस्ते कर दी और उससे पूछा कि बताओ बेटा यह तुम्हारे क्या लगते हैं। इस बात पर वह लड़का शर्माने लगा और कुछ नहीं बोला।
मुझे बहुत हैरानी हुई चाची जी की यह बात सुनकर कि ” क्या करें आजकल के बच्चों को यह सब कहां कुछ पता है, पढ़ाई का बोझ ही इतना है कि फुर्सत ही नहीं मिलती “
आज के समय में पेरेंट्स ऐसी बातें कहना, अपने आप में एक बड़प्पन समझते हैं। लेकिन ऐसा करके वो अपने बच्चों को कहीं ना कहीं अंधेरे की तरफ़ लेकर जा रहे हैं।
अगर आपके घर में कोई मेहमान या रिश्तेदार आते हैं तो अपने बच्चों को भी कुछ समय तक साथ में बैठा कर बातचीत कीजिए। इससे उनके अंदर सामाजिक संपर्क स्थापित करने का आत्मविश्वास पैदा होगा और शुरुआत से ही धीरे-धीरे खुल कर बात करना सीख जाएंगे। यह चीज उनको अपनी बात रखने, आत्मविश्वास बनाए रखने और बिना डरे लोगों से बात करने में मदद करेगी।